सोनेरी पहाट…

हरवलेल्या माझा मी ठाव कसा सांगू?
रुसलेल्या अंतर्मनाचा मी भाव कसा सांगू?
हरलोय अनेक डाव एक डाव कसा सांगू?
किती खोल रुतलाय हा घाव कसा सांगू?
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सांगायचा म्हटला तरी कोणाला सांगता येत नाही,
कितीही वाटलं तरी भावनेला टांगता येत नाही,
मन मारून मला असा नांदता येत नाही,
पण नशिबाची लक्ष्मणरेषा सुद्धा लांघता येत नाही
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कधीतरी नशिबाची पुण्याई पावून येईल,
दु:खामागे सुखाची लाट धावून येईल,
मनाच्या या गगनामध्ये आनंद मावून येईल,
आयुष्याची सकाळ सोनकिरणं लावून येईल
—-
— @pbkulkarni

ज़िंदगी के साथ…

जब तक आशना ज़िंदा है,
ख्वाबोंका सिलसिला चलने दो,
जब तक ख्वाब ज़िंदा है,
आशा की किरन जलने दो

ज़िंदगी के इस सफर में,
जाने कहा मोड आ जाए,
जब तक रास्ता जवां है,
कदमोंको आगे बढने दो

हमसफर मिलेंगे बिछडेंगे,
वक्त के पहिए ना रुकेंगे,
कभी आँखें नम हुई तो,
आँसूओं को थोडा बहनें दो

मंजिलें काफी दूर है,
और रास्ता शायद कठिन हो,
ठोकरें अगर लगी तो,
खून को थोडा बहने दो

— @pbkulkarni (17-5-2015)

ये पल…

ना आनेवाला, ना जानेवाला,
ये पल है यहां ठहरनेवाला
* * *
लम्हें कुछ खामोश है,
कुछ पल मदहोश है,
दिल थोड़ा सेहमासा है,
चाहतोंमें बिखरा सा है,
नया दिन हो उजालेवाला,
ये पल है यहां ठहरनेवाला
* * *
तस्वीर से तुम्हारी बातें हुई,
धड़कनें यूँ बेताब हुई,
उमंगें फिर से जवां हुई,
फिर सच्चाईसे मुलाक़ात हुई,
ये मंज़र यूँ ही है भटकनेवाला,
ये पल है यहां ठहरनेवाला
* * *
कभी दूर ढकेलता हूँ,
फिर पास बुलाता हूँ,
अंदर ही अंदर झुलसता हूँ,
फिर भी तुम्हें पास रखता हूँ,
ये बंधन ना है टूटनेवाला,
मैं हूँ यहां ठहरनेवाला
* * *
— @pbkulkarni

कुछ लम्हें बस…

कभी वक़्त फिसल जाता है,
रेत की तरह,
तो कभी लम्हें जलते है,
जुगनूओंकी तरह,
चाहतें बस उड़ जाती है,
हवाओंकी तरह,
पर तुमसे की हुई मोहोब्बत,
बरक़रार रहेगी हमेशा.
* * * * *
बहोत कुछ माँगा नहीं था,
तुम्हारे सिवा तुमसे,
खुद को तुझमें पाया जब,
झाँका मैंने खुद में,
ख्वाबोंका सिलसिलासा बन गया,
तेरे और मेरे बीच,
रेशमी धागा खींचता गया,
इन दूरियोंकी बीच.

कल का सूरज…

सब्र करेंगे  रातभर, ये अंधेरा ढलनेका,
कल का सूरज क्या लाएगा, किसे है पता?
* * *
क्या होगी धूप कल, या छाँव में दिन गुजरेगा,
कल का दिन क्या दिखायेगा, किसे है पता?
* * *
रास्ता होगा ख़त्म, या चलती जाएँगी राहें,
राही बननेका दर्द है या ख़ुशी, किसे है पता?
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सब्र करेंगे दिनभर, फिर सूरज ढलनेका,
ये रातें क्या ख्वाब लाएगी, किसे है पता?
* * *
सुहाने होंगे सपने, या फिरसे दूरियां दिखेगी,
किस कश्मकश से गुजरेंगे, किसे है पता?
* * *
चाहतें होगी पूरी, या तक़दीर फिर से नचाएगी,
ज़िंदगी क्या क्या दिखाएगी, किसे है पता?
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— @pbkulkarni

दो मिनिट की चाहत…

इम्तिहान का समय, आंखरी कुछ पंक्तियाँ,
कागज़ खत्म हो जायेंगे,
पर दो मिनिट की चाहत,
कभी खत्म नहीं होगी
* * *
सुबह का वक़्त, घडी की ललकार,
जगाने की कोशिशें थक जाएगी,
पर दो मिनिट की चाहत,
कभी खत्म नहीं होगी
* * *
किताब के आंखरी पन्ने, कुछ खुलते हुए राज़,
दफ्तर को भले ही देर हो जायेगी,
पर दो मिनिट की चाहत,
कभी खत्म नहीं होगी
* * *
दोस्तोंके साथ खेलना, शाम का ढलता सूरज,
माँ की आवाज अनसुनी हो जाएगी,
पर दो मिनिट की चाहत,
कभी खत्म नहीं होगी
* * *
 — @pbkulkarni

बाग़-ए-ग़ुलाब…

धीरे से जाना उस बाग़ में,
जहा गुलाब खिलता हो,
खुशबू के संग संग कांटोंको,
जहा आझमाने मिलता हो
* * *
कभी ग़म के साये मिलेंगे,
कभी खुशियोंकी बारात बारात मिलेगी,
शायद खाली हाथ घूमना पड़े,
पर तकदीर से मुलाक़ात भी होगी
* * *
कुछ अलग फूल भी मिलेंगे,
उनसे भी गुफ़्तगूं कर लेना,
शायद गुलाब सी ख़ुशबू ना मिले,
पर उनको भी अपना लेना
* * *
कई रास्ते होंगे बाग़में जाने के,
पर अकेलेपन का रास्ता चुन लेना,
अगर ख़ुशबू साथ आये तो ठीक,
वरना खुद ही खुद के साथ चल देना
* * *
 — @pbkulkarni

मेरा साहिल भी तू और भँवर भी…

संभाला था खुद को बोहोत,
इस भँवर से दूर रखा था,
पर एक नाज़ुक मोड़ पर,
अनजाने में खुद को खो बैठा
* * *
जान लगा दी थी दांव पर अपनी,
खिलाफ जो थे उनको भी मनाया,
मन से अपनाया किसीको,
पर हाथ में बेगानापन आया
* * *
इतना डूबता गया मैं के उसकी,
गैरत भी समझ न पाया,
जब पता चला, पानी सर के ऊपर था,
किनारा दूर, और खुद को अकेला पाया
* * *
— @pbkulkarni (c)

एक साठवण… #Marathi #Poem

मोडक्या भिंतींच्या आडून,
काही स्वप्ने डोकावून पहात आहेत,
कधी काळचा चिरेबंदी वाडा,
आता फक्त भग्न अवशेष आहेत

* * *

उध्वस्त खिडक्यांच्या चौकटीतून,
काही सूर दरवळत आहेत,
पूर्वी सोनेरी कवडसे यायचे,
आता भकास ऊन भेडसावत आहे

* * *

भेगाळलेल्या भुईवर कधी,
पुसटसे पावलांचे ठसे दिसतात,
एकेकाळी इथे संगमरवरी नक्षी हसायची,
आता फारश्यांच्या ठीकार्‍या वावरतात

* * *

परसातल्या बागेत अधूनमधून,
अंकूर डोक वर काढताना दिसतात,
पूर्वी फळा फुलांचा सडा पडायचा इथे,
आता चुरगाळलेली फुल पसरलेली दिसतात

— @pbkulkarni

हमजोली… #Poem

मैं जो गुनगुनाता हूँ गीत,
क्यूँ ना जाने मेरा ये मीत,
मेरे धङकनोंकी बोली,
क्यूँ न जाने हमजोली
* * *
मेरे सुरोंका ये तराना,
और ये आंसूओंका बहाना,
भरी भावनाओंकी झोली,
क्यूँ न जाने हमजोली
* * *
नजर जब ये मिली थी,
बातें तभी से बनी थी,
नजरोंकी ये आँख-मिचौली,
क्यूँ न जाने हमजोली
* * *
अब जो दूरियाँ बढ़ी है,
अब जो दरारें पड़ी है,
फिर क्यूँ सताती सूरत ये भोली,
क्यूँ न जाने हमजोली